ज्योतिष का समयानुसार बदलाव आवश्यक

 

Jyotish Gyan in Hindi 

गत्यात्मक ज्योतिष की अवधारणा के अनुसार पृथ्वी और इसमें स्थित सभी जड़-चेतन एवं जीव विकासशील है। दिन प्रतिदिन पृथ्वी के स्वरुप ,वायुमंडल ,तापमान एवं इसमें स्थित पर्वतों ,नदियों ,चट्टानों ,वनों सभी में कुछ न कुछ परिवर्तन देखा जा रहा है । मनुष्य में तो यह परिवर्तन अन्य प्राणियों की तुलना में और तेजी से हुआ है , इसलिए यह सर्वाधिक विकसित प्राणि है ।

पर्यावरण के हजारों , लाखों वर्ष के इतिहास के अध्ययन में यह पाया गया है कि प्रकृति में होनेवाले परिवर्तन एवं वातावरण में होनेवाले परिवर्तन के अनुरुप जो जड़-चेतन अपने स्वरुप में एवं स्वभाव में परिवर्तन ले आते हैं, उनका अस्तित्व बना रह जाता है। विपरीत स्थिति में उनका विनाश निश्चित है । इसलिए गत्यात्मक ज्योतिष ने हमें नए ढंग से कुंडली देखने का तरीका बताया है.

Jyotish gyan in Hindi

करोड़ो वर्ष पूर्व डायनासोर के विनाश का मुख्य कारण पर्यावरणवेत्ता यह बतलातें हैं कि वे पृथ्वी के तापमान के अनुसार अपना समायोजन नहीं कर सकें। इसलिए कोई भी चीज जो अपने वातावरण के अनुरुप अपना परिवर्तन नहीं कर सके ,उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। भेड़ ठंडे प्रदेश का प्राणी है,इसलिए ठंड से बचने के लिए उसके शरीर में गर्म रोएं बन जातें हैं। यदि , उसको उस प्रदेश से लाकर गर्म प्रदेश मे रखा जाए तो रोएं बनने की मात्रा अवश्य कम हो जाएगी ,ताकि उसका शरीर और गर्म न हो जाए और उसका अस्तित्व बना रहे ,नही तो उसका विनाश निश्चित होगा।

Jyotish gyan kaise sikhe 

इस प्रकार सभी शास्त्रों पर भी वातावरण का प्रभाव देखा गया है। विभिन्न भाषाओं के साहित्य पर युग का प्रभाव पड़ता देखा गया है। नीतिशास्त्र युग के साथ परिवर्तित नीतियों की चर्चा करता है । राजनीतिशास्त्र में भी अलग युग और परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न सरकारों के महत्व की चर्चा की जाती है। औषधि-शास्त्र भी अपनी औषधियों में हमेशा परिवर्तन लाता रहा है। जमाने के साथसाथ अलग अलग पैथी लोकप्रिय होती रही । वर्तमान युग में भी हर आर्थिक और सामाजिक और मानसिक स्तर के अनुरुप इलाज की अलग-अलग पद्धतियॉ अपनायी जाती हैं। आर्थिक नीतियॉ भी समय और वातावरण के अनुरुप अपने स्वरुप को परिवर्तित करती रही । जल्द ही गत्यात्मक ज्योतिष का कोर्स तैयार कर आप सबों को सीखलाया जायेगा! इस चार्ट से भी आप भावधिपति को धनात्मक या ऋणात्मक अंक दे सकते हैँ! 

Jyotish Gyan 2021

Jyotish gyan
 
आज हजारों वर्ष व्यतीत होने तथा ज्योतिष के क्षेत्र में हजारों लोगों के समर्पित होने के बावजूद ज्योतिष शास्त्र के नियमों में कोई परिवर्तन नहीं होते देखा जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र की जितनी भी पत्रिकाएं आ रहीं हैं ,अधिकांश लेख पुराने “लोकों और उसके अनुवादों से भरे होते हैं। हजारों वर्ष पूर्व और अभी के लोगों की मानसिकता में जमीन आसमान का फर्क आया है , सामाजिक स्थितियॉ बिल्कुल भिन्न हो गयी हैं। हर क्षेत्र में लोगों का दृष्टिकोण बदला है ,तो क्या ज्योतिष के नियमों में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए ?

Jyotish Gyan  History

जिस प्रकार हर विज्ञान के इतिहास का महत्व है ,उस प्रकार ज्योतिष शास्त्र के इतिहास का भी महत्व होना चाहिए ,किन्तु यदि हम सिर्फ हजारो वर्ष पूर्व के ग्रंथों के हिन्दी अनुवाद पढ़ते रहें तो आज के युग के अनुसार सही भविष्यवाणी कदापि नंहीं कर सकते। समाज और वातावरण के अनुसार अनुसार अपने को न ढ़ाल पाने से जब डायनासोर जैसे विशालकाय जीव का अस्तित्व नहीं रहा तो क्या ज्योतिष विज्ञान का रह पाएगा ?

Advance Jyotish Gyan

ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार लग्न से छठे , आठवें और बारहवें भाव में ग्रहों की स्थिति को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता था । इसके कई कारण हो सकते हैं। सर्वप्रथम हम छठे भाव की चर्चा करें। मनुष्य का छठा भाव किसी प्रकार के झंझट से संबंधित होता है। ये झंझट कई प्रकार की हो सकतीं हैं। बचपन में शरीर में किसी प्रकार की बीमारी झंझट का अहसास देती है। बड़े होने के बाद रोग , ऋण और शत्रु -- तीन प्रकार के झंझटों से इंसान को जूझना पड़ सकता है।

इन तीनों संदभो को हम प्राचीन काल के अनुसार देखे तो हम पाएंगे कि इन तीनों ही स्थितियों में मनुष्य का जीवन बहुत ही कष्टपूर्ण हो जाता था। यदि वह किसी प्रकार के रोग से ग्रसित हो जाता था तो उसका अच्छी तरह इलाज नहीं हो पाता था। उसकी मौत लगभग निश्चित ही होती थीं। इलाज के बाद भी वह जीवनभर कमजोर ही बना होता था। स्वास्थ्य की कमजोरी उसके जीवन को विकास नहीं दे पाती थी ,क्योंकि उस समय सफलता प्राप्त करने के लिए शारीरिक मजबूती का विशेष महत्व था।

6th House Astrology

इसी प्रकार ऋणग्रस्तता प्राचीन समाज के लिए अभिशाप थी। लोग जो कुछ भी खेत में उगा लेतें , खाकर अपना भरण-पोषण करते। अन्य किसी जरुरत के लिए वे वस्तु विनिमय प्रणाली का उपयोग करते। किन्तु अन्य किसी जरुरत के लिए कभी उन्हें ऋण लेने की आवश्यकता पड़ गयी तो उन्हें महाजन के पास जाना होता था । ऐसी हालत में उनके चंगुल में इनकी कई पीढ़ियॉ फंस जाती थी , क्योंकि उस समय ऋण लेने में ब्याज की दर बहुत अधिक होती थी । चक्रवृद्धि ब्याज के रुप में मूलधन बढ़ता ही जाता था और चाहकर भी कोई इस चंगुल से निकल नहीं पाता था , कभी कभी कई पीढियां इस दलदल में फंसी रह जाती थी।

इसी प्रकार उस समय शत्रु की स्थिति भी बहुत बुरी होती थीं। आज की तरह कमाई के लिए लोग अलग-अलग साघनों पर निर्भर नहीं रहते थे। साथ ही मिल-बैठकर किसी समस्या का समाधान नहीं निकाला जाता था। किसी व्यक्ति से शत्रुता बढ़ाना गंभीर स्थिति में पहुंचना होता था। मार-पीट में लोग फंसे ही रह जाते थे और जीवनभर की कमाई मुकदमों में चल जाती थी। यही कारण हैं कि प्राचीनकाल में लोग रोग,ऋण शत्रु जैसे झंझटों में पड़ना नहीं चाहते थे। इसलिए हमारे पुराने ज्योतिषियों ने भी इन भावों में ग्रहों की स्थिति को बुरा माना होगा।

किन्तु आज समाज की स्थिति में काफी परिवर्तन आया है। काफी असाध्य रोगों पर काबू पाया जा चुका है। इन रोगों से ग्रसित होने पर झंझट भले ही बढ़े , किन्तु जान संकट में नहीं पड़ती है। इसलिए छठे भाव में ग्रहों की स्थिति अच्छी हो तो उसे बुरा नहीं समझना चाहिए। गत्यात्मक दशा पद्धति के अनुसार यदि ग्रह छठे भाव में गतिज और स्थैतिक उर्जा से संपन्न हो तो जातक किसी भी प्रकार के झंझट को सुलझाने की शक्ति रखता है। वह सफल डॉक्टर होकर रोगी का उपचार कर सकता है ,न्यायाधीश होकर झगड़ों को सुलझा सकता है और प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी हो सकता है।


आधुनिक युग में ऋणग्रस्तता की परिभाषा भी बदल गयी है। आज किसी भी व्यवसायी को उचित दर पर ऋण प्राप्त हो जाता है। यदि वह सही व्यवस्थापक हो तो अपनी पूंजी से कई गुणा अधिक पूंजी प्राप्त कर उसका प्रवाह कर सकता है। इस प्रकार उसकी कमाई ब्याज-दर से बहुत अधिक होती है और व्यवसायी अपने व्यवसाय में निरंतर वृद्धि महसूस करता है। इसलिए अभी ऋणग्रस्तता की मात्रा से व्यक्ति के स्तर की पहचान होती है। जो 50000 के ऋण से ग्रस्त है वह छोटा व्यवसायी तथा जो 5000000 के ऋण से ग्रस्त है वह बड़ा व्यवसायी है । 

इसलिए कहा जा सकता है कि छठे भाव में स्थित गत्यात्मक और स्थैतिक शक्तिसंपन्न ग्रह जातक के सफल व्यवसायी और प्रभावशाली व्यक्ति होने की सूचना देते हैं। छठा भाव प्रतियोगिता से संबंधित भी होता है इस कारण प्रतियोगिता में भी सफलता की उम्मीद ऐसे ग्रहों से की जा सकती है। हॉ यदि ग्रह गत्यात्मक या स्थैतिक दृष्टि से कमजोर हो तो अवश्य कोई बीमारी या कुछ झंझटों में फंसे होने की स्थिति बन सकती है। ऐसा केवल उस ग्रह के दशाकाल में ही होता है जो छठे भाव मे कमजोर होकर विद्यमान होते हैं।
इसी प्रकार किसी जातक का आठवॉ भाग जन्म , मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्‍ट का होता है। प्राचीन काल में किसी प्रकार की आकिस्मक दुर्घटना हुई , शरीर के किसी अंग में गड़बडी आई या किसी प्रकार की बीमारी का उसकी जिंदगी पर बुरा प्रभाव पड़ा तो उसकी जिंदगी किसी काम की नहीं रह जा थी। उसे अपना जीवन भार सा महसूस होता था किन्तु आज अनेक प्रकार के मृत्युतुल्य कष्टों को भी मेडिकल साइंस ने दूर कर दिया है । किसी दुर्घटना में बेकार हुए शारिरिक अंगों की जगह कृत्रिम अंगों ने ले ली है , जिससे बहुत अच्छी तरह काम लिया जा सकता है।

इसी प्रकार मृत्युतुल्य अनेक प्रकार की बीमारियों का इलाज ढूंढ़ लिया गया है , जिसके बाद आज आठवें भाव में ग्रहों की उपस्थिति मात्र को हौवा नहीं समझा जा सकता। `गत्यात्‍मक दशा पद्धति ´ के अनुसार यदि ग्रह आठवें भाव में गत्यात्मक और स्थैतिक दृष्टि से मजबूत हों तो जातक किसी मृत्युतुल्य कष्ट को दूर करने के उपाय सोंच सकता है। नया आविष्कार कर सकता है। जीवन के सुखों की खोज कर सकता है। ऐसा कुछ सोंच सकता है ,जिससे जीवन जीने की गड़बड़ी को दूर किया जा सके। वह सफल समाज सुधारक हो सकता है, समय का अच्छा उपयोग कर सकता है।

हॉ ,यदि आठवें भाव में स्थित ग्रह गत्यात्मक या स्थैतिक दृष्टि से कमजोर हों तो अवश्य मृत्युतुल्य कोई कष्ट उनके जीवन में आ सकता है , जिसके निराकरण का कोई उपाय या तो अभी नहीं सोंचा जा सका है या उस उपाय को वह मानसिक या आर्थिक तौर पर स्वीकार करने में असमर्थ है। इस प्रकार उसका जीवन बोझ बन जाता है। इस कष्ट से वह उस दशाकाल में अधिक प्रभावित होता है , जो ग्रह आठवें भाव में स्थित होता है।

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इसी प्रकार किसी जातक का बारहवॉ भाव उसके खर्च और बाह्य संबंध को दर्शाता है। प्राचीन काल में सभी वस्तुओं के स्वयं उत्पादन और उपभोग करने की प्रथा थी। बाद में इन सारे उत्पादनों के बीच स्वयं को व्यवस्थित न कर पाने के कारण समाज के सभी वर्गों के मध्य श्रमविभाजन यानि हर कायो को विभिन्न लोगों के मध्य विभाजित करने की प्रथा का विकास उत्पादन में वृद्धि लाने हेतु किया गया । आपस में अदला-बदली या वस्तु-विनिमय प्रणाली द्वारा लोग सभी प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करते रहें, और इस तरह खर्च की आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई।

मुद्रा के आविष्कार के बाद भी लोग उसे नही के बराबर ही खर्च करते थें। किसी विपरित स्थिति के उत्पन्न होने पर ही ,जैसे किसी बीमारी या शत्रुता के चक्कर में ही लोगों को खर्च करना पड़ता था। ऐसी परिस्थिति में उन्हें अपने खाने-पीने के खर्च को कम कर या खेत जमीन जायदाद को बेचकर खर्च करना पड़ता था , इसलिए ही पुराने ज्योतिषियों ने इस भाव में ग्रहों की स्थिति को कष्टकर समझा होगा। बाद में जब मुद्रा का प्रयोग विनिमय के लिए आरंभ भी हो गया तब भी लोगों के लिए आय से कम खर्च करना और आड़े वक्त के लिए कुछ बचाकर रखने की प्रवृत्ति थी।

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पर आधुनिक युग में ` इतने पैर पसारिए जितनी लम्बी खाट ´ की जगह पॉवो की साइज के हिसाब से खाट की व्यवस्था करने की मानसिकता का विकास हुआ है , जिसके अनुसार व्यय को आय से अधिक महत्व दिया गया है। मुद्रा के निरंतर गिरते हुए मूल्य को देखते हुए जिन लोगों की बचत कम और काम अधिक होता जा रहा है , उनकी तरक्की अधिक देखी जा रही है , इसलिए खर्च के स्थान पर अघिकांश ग्रहों की उपस्थिति आज के युग के अनुरुप है।

आज किसी व्यक्ति का खर्च उसकी क्रयशक्ति और स्तर को दिखलाता है। किसी व्यक्ति का मासिक खर्च 500 रु है या 50000 रु , इससे आप उसके स्तर का अनुमान लगा सकते हैं । इसीलिए 12वें भाव में ग्रहों की स्थिति मात्र से आप उसके बुरे फल की कल्पना न करें। `गत्यात्मक दशा पद्धति ´ के अनुसार गत्यात्मक या स्थैतिक शक्ति से संपन्न ग्रह यदि 12वें भाव में हो तो जातक के पास पर्याप्त क्रय शक्ति होती है । उसका बाह्य संबंध मजबूत होता है। उस ग्रह के दशा-काल में इसका अच्छा प्रभाव देखा जा सकता है,, जो 12वें भाव में मजबूत होकर स्थित होता है। किन्तु यदि ग्रह कमजोर या वक्री होकर 12वें भाव में स्थित होते हैं तो जातक के पास खर्चशक्ति की कमी होती है। वह काफी सोंचसमझकर खर्च करने की प्रवृत्ति रखता है। इस कारण तनावग्रस्त रहता है।

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    संगीता पुरी

    Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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