google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 इतने दिनो बाद भी दिलों के मध्‍य फासला न बना ..यही क्‍या कम है ??

इतने दिनो बाद भी दिलों के मध्‍य फासला न बना ..यही क्‍या कम है ??

हमने तो बहुत दिनों तक अपने हाथो से भाइयों को राखी बांधी , आजकल की बहनें तो शुरू से ही पोस्‍ट से राखी भेजने या ग्रीटींग्स कार्ड के द्वारा राखी मनाने को मजबूर हैं, भाई साथ रहते ही कितने दिन हैं ??  बहनों के लिए वो दिन तो अब लौट नहीं सकते , जब संयुक्‍त परिवार हुआ करते थे और राखी बंधवाने के लिए भाई क्‍यू में खडे रहते थे। जहां एक ओर सुबह से स्‍नान कर पूजा कर भूखी  प्‍यासी बहने राखी की तैयारी में लगी होती , वहीं दूसरी ओर भाई भी स्‍नान कर बिना खाए पीए ही राखी के इंतजार में बैठे होते। एक एक कर सभी बहनें सभी भाइयों को , चाहे वो संख्‍या में कितने भी क्‍यूं न हों , टीके लगाती , राखी बांधती और मिठाईयां खिलाती। बदले में भाई बहनों को वो नोट थमाते , जो एक एक भाइयों के लिए उनकी माताओं ने उन्‍हें दिए होते। आज के दिन मिठाइयों की खपत की तो पूछिए मत , एक एक भाई के हिस्‍से दस , बारह , पंद्रह मिठाइयां तो होनी ही चाहिए।  यहां तक कि पडोसी के बच्‍चे भी राखी बंधवाने आ जाया करते , इसलिए आज घर में भरपूर मिठाई रखनी पडती थी। भाइयों को इतनी मिठाइयां खाते देख बहनें और बहनों को नोट गिनते देख भाई ललचते रहते।

गांव में तो बढे हुए ऑर्डर को पूरा करने के लिए खोए की कमी हो जाती और हलवाई इस खास त्‍यौहार पर मिठाइयों के साइज और क्‍वालिटी में काफी कटौती करते। इसलिए महिलाएं कई दिनों से ही घर मे खपत होनेवाले दूध के खोए बनाकर हल्‍की फुल्‍की मिठाइयां या पेडा बना लिया करती थी। चूंकि घर में पेडे का सांचा नहीं होता , गोल पेडे बनाकर उसे गुल के डब्‍बे के ढक्‍कन से दबा दिया जाता , जिससे उसके ऊपर  कलात्‍मक डिजाइन बन जाता। उस जमाने में मंजन के रूप में गुल का प्रयोग लगभग हर घर के मर्द करते थे ।  मिठाई की कमी के कारण ही बाजार का कम से कम सामान प्रयोग करनेवाले हमारे परिवार में गुलाबजामुन बनाने वाली गिट्स की पैकेट का उसी जमाने से उपयोग आरंभ कर दिया गया था। इसके साथ ही मिठाइयों के लिए हलवाई पर निर्भर रहने की बाध्‍यता कम हो गयी थी।

शादी के बाद शायद एकाध बार राखी में मायके में रहना हो सका हो , पर कई वर्षों तक ससुराल में कोई न कोई भाई आक‍र राखी बंधवा ही लेता था , दूरी भी तो अधिक नहीं थी , 30 कि मी होते ही कितने हैं ?? पर अब हमारे शहरों के मध्‍य का फासला जितना है , उससे अधिक दूरी रोजगार के क्षेत्र में चलने वाली प्रतिस्‍पर्धा ने बना रखी है। पिछले कई वर्षों से राखी का त्‍यौहार यूं ही आता और चला जाता है , डाक विभाग या कूरियर सर्विस के द्वारा राखी भाइयों तक पहुंचाकर जहां एक ओर मै , वहीं दूसरी ओर सभी भाई भी राखी वाले दिन एक फोन कर औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। राखी के दस दिन पहले मैं खुद भाइयों के पास से चली आयी , उन्‍हें क्‍या कहूं ?? शादी विवाह और घर गृहस्‍थी के बाद अपनी अपनी जबाबदेही में व्‍यस्‍त रहना ही पडेगा । कोई जरूरत आ पडी तो हम एक दूसरे को समय दे देते हैं , यही बहुत है। इतने दिनो बाद भी दिलों के मध्‍य फासला न बना , यही क्‍या कम है ??
संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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