आज जाकिर अली रजनीश जी एक खबर लेकर आए हैं कि इंडिया टी वी के एक कार्यक्रम में ज्योतिष को बकवास सिद्ध कर दिया गया। यह जानते हुए कि एक ही समय में अस्पताल में लडका या लडकी कुछ भी जन्म ले सकता है , जन्मकुंडली से यह बताना संभव नहीं है कि जातक लडका है या लडकी , फिर भी ज्योतिष की परीक्षा लेने के क्रम में यही प्रश्न पूछा जाए तो इसे क्या कहा जाए ? ज्योतिष यह मानकर चलता है कि इसके माध्यम से कैरियर के कई विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ एक का चुनाव किया जा सकता है , पर यदि ज्योतिष को गलत सिद्ध करने के लिए जन्मकुंडली देकर जातक के कैरियर का क्षेत्र पूछा जाए , तो इसे ज्योतिष जैसे विषय को बदनाम करने की साजिश ही मानी जा सकती है। इसके पहले भी मैं एक आलेख में स्पष्ट कर चुकी हूं कि हेड या टेल ये ज्योतिष का नहीं , ये ज्योतिष विरोधियों द्वारा आंकडों के उलट पुलट का खेल है।
इससे पहले 27 फरवरी का समाचार पत्रों और ब्लॉग जगत में अदालत ब्लॉग के माध्यम से भी जानकारी मिली थी कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने 24 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्रालय, महाराष्ट्र खाद्य एवं औषधि विभाग और राज्य के डीजीपी से एक जनहित याचिका पर जवाब मांगे हैं। इस याचिका में ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, रत्न विज्ञान और ऐसी अन्य चीजों पर पाबंदी लगाने की मांग की गई है। गैरसरकारी संगठन 'जनहित मंच' के प्रमुख और याचिकाकर्ता भगवानजी रयानी ने ड्रग्स ऐंड मैजिक रेमेडिज ऐक्ट (आपत्तिजनक विज्ञापन) 1954 पर अमल के बारे में ब्यौरा भी मांगा है। रयानी ने अपनी जनहित याचिका में मशहूर ज्योतिषी बेजन दारूवाला को प्रतिवादी बनाया है। अन्य प्रतिवादियों में वास्तु सलाहकार रविराज, राजेश शाह, चंद्रशेखर गुरुजी, रत्नशास्त्री भाविक सांघवी और ब्रह्माश्री श्री कुमार स्वामीजी हैं।
पर कल पुन: कई माध्यमों खासकर अदालत ब्लॉग के माध्यम से जानकारी हुई कि इस जनहित याचिका के जवाब में भारत सरकार के डिप्टी ड्रग कंट्रोलर डा. आर रामकृष्ण ने कहा कि ज्योतिष पर प्रतिबंध की मांग एक गलत अवधारणा परआधारित है और यह अनुचित है। उन्होंने कहा कि ज्योतिष चार हजार वर्षों पुराना समय की कसौटी पर खरा विज्ञान है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि ज्योतिष पाठ्यक्रम पेश करना देश के संविधानकी धर्मनिरपेक्षता की भावना का अतिक्रमण नहीं है। केंद्र का शपथ पत्र भी न्यायालय के उसी फैसले पर आधारित है। केंद्र ने कहा कि ज्योतिष और संबंधित विषय औषधीय और चमत्कारिक इलाज (आपत्तिजनक विज्ञापन निरोधक) अधिनियम 1954 के दायरे में नहीं आते।
परंपरागत विषय के प्रति सरकार के इस निर्णय का हम ज्योतिषी स्वागत करते हैं, जिसके कारण हमारे द्वारा ज्योतिष के अध्ययन मनन या लेखन में कोई बाधा नहीं आएगी। सैकडों वर्षों से विदेशी शासन काल में तो हमारे परंपरागत ज्ञान का विनाश करने की मंशा रखनेवालों से शायद छुप छुपा कर अपना जीवन बर्वाद कर धरोहर के तौर पर लोग इसे संभालते आ रहे होंगे । पर आज सरकार के द्वारा ज्योतिष को मात्र विज्ञान कह देने से किसका भला होने वाला है , यदि भला करना है तो इसे विकसित बनाने के लिए हमें प्रोत्साहित करे , ज्योतिष पर खर्च करे। यह कैसा विरोधाभास है कि सरकार ज्योतिष को विज्ञान भी मानती है और अन्य विकसित शास्त्रों की तुलना में इसपर खर्च भी नहीं करना चाहती , कभी किसी प्रकार की प्रतियोगिता नहीं रखती, यहां तक कि ज्योतिष पर आधारित मेरे पिताजी के शोधपत्रों तक को स्वीकार भी नहीं करती ।
एक लेख में मैने इस सदी भर के कुछ समयांतराल की चर्चा की है , जिसमें जन्म लेनेवाले लोगों का मंगल कमजोर था , जिसके कारण किसी एक संदर्भ को लेकर उन्होने 24 वर्ष की उम्र से 36 वर्ष की उम्र तक खासकर 30 वर्ष की उम्र तक अपनी जीवन यात्रा में निरंतर गंभीर कठिनाइयां झेली। इतना ही नहीं इन तिथियों के आसपास जन्म लेनेवालों ने भी काफी हद तक कठिनाइयां झेली होंगी। मात्र इस एक तथ्य को उजागर करके ज्योतिष के प्रति समाज में विश्वास बनाया जा सकता है तथा दूसरे विकसित विज्ञानों की सहायता लेकर ज्योतिष को अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। पर हमारी कोई संस्था सर्वे नहीं करती , हमारे वैज्ञानिक पश्चिमी देशों में हुए सर्वे को ही अपने लेखों में , शोधों में स्थान दिया करते हैं । शायद ही मैने कभी अपने देश की किसी संस्था के द्वारा किए गए सर्वे की चर्चा पायी हो ।